वक्त भी कितना अजीब हें ना,
कब किस मोड़ पर ,
आप के साथ किया सुलुत होने वाला हें,
वह ख़ुद आप को ही पता नही होता हें। .......(१ )
वक्त किसी के लिए नही ठहरता हें ,
मंजील किसी को आसानी से नही मिलता हें ,
हर क्वाहीश कभी पूरा नही होता हें ,
फ़िर भी जिन्दगी जीना पड़ता हें । ........(२ )
कियों की,
हम हारने वालों मैं नही हें ,
हम जिन्दगी से रूठने वालों से नही हें ,
हम कमजोर नही हें ,
हम हालात से बेवस भी नही हें ,
हम तो सिर्फ़ ख़ुद जीते हें ,
और , दुसरे को जीना सिखाते हें । .........(३ )
हम उजालों मैं सपने नही देखते हें ,
हम दुसरे से मदत की आस नही रखते हें ,
हम कभी गरीवी से तंग नही होते हें ,
हम ख़ुद को जिलत महसुश नही करते हें ,
हम कभी नसीब को कुसूरवार भी नही थराते हें ,
कियों की, ये जिन्दगी तो हमें जीना हे ना । .........(४ )
Tuesday, November 24, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
बदरी जी कविता का भाव बहुत सुन्दर है...पर वर्तनी को सुधारिये...शब्दों को सही तरीके से लिखे...और सुन्दर लगेगा...
स्वागत और बधाई
अच्छा सन्देश...
स्वागत है आपका...
- सुलभ
zindgi zinda dili ka nam hai.narayan narayan
bahut pyaari kavita likhi hai aapne.. pad kar achha laga...
Meri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
aapke comments ke intzaar mein...
A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas
Post a Comment